देव उठनी एकादशी को देव प्रबोधिनी एकादशी या देव उत्थानी एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। इन सभी शब्दों का अर्थ होता है-भगवान का जागरण।
यह एकादशी तिथि चतुर्मास अवधि के समापन का प्रतीक है, जिसमें श्रावण, भाद्रपद, अश्विन और कार्तिक महीने शामिल हैं।
इस अवधि के दौरान, भगवान विष्णु समुद्र तल पर आदिशेष नाग पर शयन करते हुए योग निद्रा की स्थिति में रहते हैं और देव उठनी एकादशी पर उनका जागरण होता है।
देवोत्थान एकादशी के दिन भगवान विष्णु को योगनिद्रा से जगाया जाता है और उनके विग्रह शालिग्राम का विवाह तुलसी से किया जाता है।
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पद्मपुराणके उत्तरखण्डमें वर्णित एकादशी-माहात्म्य के अनुसार श्री हरि-प्रबोधिनी (देवोत्थान) एकादशी का व्रत करने से एक हजार अश्वमेध यज्ञ तथा सौ राजसूय यज्ञों का फल मिलता है।
इस परमपुण्यप्रदाएकादशी के विधिवत व्रत से सब पाप भस्म हो जाते हैं तथा व्रती मरणोपरान्त बैकुण्ठ जाता है।
देवोत्थान एकादशी के दिन व्रतोत्सवकरना प्रत्येक सनातनधर्मी का आध्यात्मिक कर्तव्य है।
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